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धाय के जाय जो श्री यमुना तीरे ।
ताकी महिमा अब कहां लग वरनिये, जाय परसत अंग प्रेम नीरे ॥१॥
निश दिना केलि करत मनमोहन, पिया संग भक्तन की हे जु भीरे ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल, इन बिना नेंक नहिं धरत धीरे ॥२॥