भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धार बदल देंगे / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
हम नदियों की बहती
हम धार बदल देंगे
काँटों की बात नहीं
खाई का नाम नहीं
दिन-रात चला करते
थकने का काम नहीं
आएगा वक्त नया
संसार बदल देंगे
ऊँची चट्टानों को
बालू से मलना है
पर्वत के शिखरों पर
अब हमको चलना है
इतिहास नया होगा
व्यवहार बदल देंगे
दानव है बहुत बड़ा
पर नहीं डरेंगे हम
आ गए भेद कितने
संघर्ष करेंगे हम
हम विजय कथाओं में
हर हार बदल देंगे
हम देश बनाएँगे
सारे साथी अपना
पूरा होगा इसकी
धरती का हर सपना
अब जर्जर अनचाहा
आधार बदल देंगे।