भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धारा के साथ / अरविंदसिंह नेकितसिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परे बैठे देखना
देखकर आँखें मूंदना
गंवारा न हुआ
न गुज़ारा हुआ

स्तम्भों के तले
दम तो घुटने ही लगा

हाथ पैड़ भले जितना ही मारा
सांसें उतनी ही कम होती गयीं
छाले पड़ते गये

तो धुक गया…
अब से रेंगना,
नोचना,
मौकापरस्ती,
'हांजी',
येस सर,

विकास…
तरक्की…
ऐश्वर्य…
प्रेम…
नाम…
सलामी…
खुशी…
आम बातें हैं !