भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धाराएं / कैलाश पण्डा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो धाराएं
ऊपर से सीधी
ह्रदय की ओर
बहती हुई
मेरे मध्य में आकर
ठहर जाती
अरू परिशोधित होकर
पुनः ऊर्ध्वगामी बन
मस्तिष्क से
प्रस्फुटित हो
बाहर प्रवाहित होती
मेरी कलम के माध्यम से
कैनवास पर आकर
ठहर जाती।