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धारावाहिक 4 / वाणी वंदना / चेतन दुबे 'अनिल'

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मैया ! तूने सूर को बनाया सूर के समान,
तुलसी समान कौन काव्य का पुजारी है।
केशव की कविता में बुद्धि ही नसानी जो कि,
हारि - हारि जीती और जीति - जीति हारी है।
प्रेम की दीवानी मीरा, विष का पियाला पिया,
उसकी भी लेखनी माँ! शरण तुम्हारी है।
कवि रसखान सम कौन रसखान हुआ,
लेखनी रहीम की सकल नीति हारी है।