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धिग्, धन्य प्राणी / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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धरनी अति मान गुमान भरे, दिन राति विषय रस को पिवना।
करि जीनत जेब जडज्ञव नवाब, मनी मन मान चिनी धिवना॥
धिगसो, धनि ते जिन राह गहो, रज पेवंद झारि झगा सिवना।
भइ! एक खोदाय के पाय गहो, बरहंक विसारि वृथा जिवना॥9॥