भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धीमी आवाज़ में / पॉल एल्युआर / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
शाम तक मौसम ख़ूब गरम हो गया
और आकाश में तारे भी ख़ूब दमकने लगे
आकाश पारदर्शी होगा सुबह अरुण-प्रिया
और शायद सूर्य की लाली से वह दहकने लगे
और गीत पिघलेगाआकाश में सूर्य के गोले की तरह
आकाश पारदर्शी होगा सुबह, भला लगेगा
कुछ पहले ही घर से निकल जाऊँगा मैं
फिर क्या होगा दोपहर को दिन कतला लगेगा
तब काम छोड़ बीच में ही लौट आऊँगा मैं
और गीत पिघलेगाआकाश में सूर्य के गोले की तरह
फिर एक लम्बी सड़क पर पैदल-पैदल चलूँगा
चलते-चलते शहर के बाहर निकल जाऊँगा
वहाँ ख़ूबसूरत भव्य हवेलियाँ देख आँखें मलूँगा
अल्लाह क़सम ! देख उन्हें ईर्ष्या से भर जाऊँगा
और गीत मर जाएगा, जल जाएगा वो कोयले की तरह
१९१४
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय