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धीवरगीत-7 / राधावल्लभ त्रिपाठी
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इसी नाव को खेता आगे
मैं उस पार पहुँच पाऊँ
कर ही लूंगा पार
यह अपार पारावार
पहुँच ही जाऊंगा पार
तब ये लहरे नहीं रहेंगी
और होंगे ये विकराल भँवर
मैं मन को साध रहा हूँ
तराश रहा हूँ संकल्प की धार
रोक न पाएगी पानी की धार
पहुँच ही जाऊंगा पार
देह सरकती है आगे
देह में है मन
मन में है पीछे छूट गया तट
सामने केवल जल केवल जल
इसी जल पर चल-चलकर
पहुँच ही जाऊंगा पार
सरक रहा है सारा संसार
उछल रहा है पारावार
पारावार में नौका है
नौका में है गति संचार
इसी नौका पर खेता पतवार
पहुँच ही जाऊंगा पार।