भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुंध और कुहरे से / सर्वत एम जमाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


                  रचनाकार=सर्वत एम जमाल  
                  संग्रह=
                  }}

धुंध और कुहरे से

आँखें बेहाल हैं

बेपनाह कचरे से .


नियमों के पालन में

यहाँ-वहां ढील है

चूजों की रक्षा को

प्रहरी अब चील है

राजा से मंत्री से

खौफ नहीं अब कोई

जनता को ख़तरा है

अब केवल मुहरे से .


पछुआ के झोंके से

होंट फटे जाते हैं

फर्नीचर बनने को

पेड़ कटे जाते हैं

नदियों में पानी का

तल नीचे आ पहुंचा

सागर भी लगते हैं

अब ठहरे -ठहरे से.