भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धुआँ / मीना चोपड़ा
Kavita Kosh से
उठता है
मिट्टी के अन्तःकरण से
वह धुआँ धुआँ
क्यों है ?
मिट्टी जो मेरी
हथेली से लगकर
बदल जाती थी
एक ऐसे क्षण में
जिसका न कोई आदि था
न ही अन्त!
उसी मिट्टी से जो
उठता है आज
वह धुआँ क्यों है?