भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप झरोखा से झांकै छै / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
धूप झरोखा सेॅ झांकै छै,
जागोॅ नेॅ
अलसैलोॅ.सन भोर कहै छै
घूँघट झपकावोॅ
राती जे संकल्प उठैलोॅ
ऊ नै बिसराबोॅ
जीत फेर रस्ता ताकै छै,
जागोॅ नेॅ
पूरब सेॅ उठलोॅ छै सूरज
पश्चिम तक जैतै
जों मेहनत करतेॅ नै जग मेॅ
जश केना पैतै
समय काम केॅ ही आँकै छै,
जागोॅ नेॅ
भोज राति मेॅ कुम्हर रोपी
कुछ नै पैभो हो
पहनै खुद सेॅ जैभोए फेरू
जग सेॅ जैभो हो
कर्मो सेॅ हीए फल पाकै छै,
जागोॅ नेॅ