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धूप ने कर्फ़्यू लगाया है / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
देहरी मत लाँघ जाना तुम !
धूप ने कर्फ़्यू लगाया है
बन्द है आवागमन इस ओर
हवा तक करती नहीं है शोर
तोतई गरदन हिलाकर पेड़
कह रहे हैं— पड़ा रह गुमसुम
धूप ने कर्फ़्यू लगाया है
ख़ून को बदलो पसीने में
हवा कहती खड़ी जीने में
शुभ नहीं बाहर निकलने में
फैलने दे व्योम का कुंकुम
धूप ने कर्फ़्यू लगाया है
'कल मरे थे बेवज़ह ही चार'
'एक बिन्दी ख गया अख़बार'
'सत्य क्या है देवता जाने'
'मरे हैं या हो गए हैं गुम'
धूप ने कर्फ़्यू लगाया है