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धूपाएं / हरीश भादानी

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आ सवाल चुगें धूपाएं
दीवारों पर
आ बैठी यादों की सीलन
नीचे से ऊपर तक रंग खरोचे
कुतर न जाए
माटी का मरमरी कलेजा
आ सवाल चुगें धूपाएं
आंख लगाये है
पिछवाड़े पर सन्नाटा
जोड़-जोड़ पर नेजे खोभे
सेंध न लग जाए
हरफ़ों के घर में
आ फ़सीलों से गूंजें पहराएं
पसर गया है
बीच सड़ंक भूखा चौराहा
उझक उझक मुंह खोले भरम निपोरे
निगल न जाए
यह तलाश की कामधेनु को
आ वामन होलें चल जाएं