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धूमकेतु या पुच्छल तारा / बालकृष्ण गर्ग

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झाड़ू-जैसी लंबी-सी दुम
इसके पीछे देखोगे तुम।
भाप-धुएँ जैसी लगती वह,
‘धूमकेतु’ सब तभी रहे कह।

बहुत बड़ा यदि गिरे धरा पर,
जीवन सब हो जाय बराबर।
धूमकेतु है पुच्छल तारा,
अदभुत इसका लगे नजारा।

 [रचना : 11 जून 1996