कभी किसी फूल को चिंताग्रस्त देखा
जिसके कारण वह कभी खिला न हो!
चिडियाँ को कभी उदास देखा
जिससे न भटकी हो दाने की तलाश में!
और नदी को कभी विचलित देखा
जिससे तलाश नहीं करे समुद्र की गहराई का!
या पेड़ को निराश होते
जिससे छोड़ दी हो अपनी जीवंतता
धरती अगर हो जाए
चिंताग्रस्त तो
बंद हो जाएगी भीतर की गति
सूरज उदास हो जाए तो
नहीं पनपेगा अंतर्मन का तेज़!
और चांद हो जाए अगर निराश तो
रूक जाएगी खुशियों की चांदनी
जो बनी रहती है
सांसारिक सुख के बीच
और आकाश हो जाए विचलित तो
थम जाएगी आदमी के भीतर की
चिंतन शक्ति!
बस! चिंताग्रस्त होना लिखा है
आदमी के भीतर तक!
जिसे वरण करता है
कायरों की भांति
जोड़ता है निराशा से रिश्ता
जिसे कुंठित मानव से कहाँ जाए
धैर्यवान नहीं!