भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धोखा / बाल गंगाधर 'बागी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिरागे मोहब्बत को रोशन बताकर
वो लूटा मेरे घर के दौलत को आकर
गफ्लत में दलितों को गुमराह करके
मिटाया मेरा घर वो मोहलत को पाकर
दलित सल्तनत की वो रौनक नहीं है
बुझे फिर से दिल के दीये को जलाकर
ओझल हुई मेरे घर की ही खुशियां
बुलंद तमन्ना की शोहरत को ढाकर