भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धोबी गया घाट पर / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
धोबी गया घाट पर,
राही गया बाट पर,
मैं न गया घाट और बाट पर;
बैठा रहा टाट पर,
दोनों हाथ काट कर,
जीता रहा ओस चाट-चाट कर ।