भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ध्यान / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
सुरति के समुद्र में डूब रहा
हूँ मैं
और मेरे ध्यान में उतर रही हैं
तुम्हारी आँखें
अभी
सुब्हा नहीं हुई है
काश! उजाले की जगह तुम आती
शब्द
शब्द
खिल उठता भोर का सपना