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ध्यान / गोबिन्द प्रसाद

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सुरति के समुद्र में डूब रहा
हूँ मैं
और मेरे ध्यान में उतर रही हैं
तुम्हारी आँखें
अभी
सुब्हा नहीं हुई है
काश! उजाले की जगह तुम आती
शब्द
शब्द
खिल उठता भोर का सपना