न बुझी
आग की गाँठ है
सूरज :
हरेक को दे रहा रोशनी —
हरेक के लिए जल रहा —
ढल रहा —
रोज़ सुबह निकल रहा —
देश और काल को बदल रहा
02 अप्रैल 1968
न बुझी
आग की गाँठ है
सूरज :
हरेक को दे रहा रोशनी —
हरेक के लिए जल रहा —
ढल रहा —
रोज़ सुबह निकल रहा —
देश और काल को बदल रहा
02 अप्रैल 1968