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न हो गर आशना नहीं होता / सीमाब अकबराबादी
Kavita Kosh से
न हो गर आशना नहीं होता|
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता|
तुम भी उस वक़्त याद आते हो,
जब कोई आसरा नहीं होता|
दिल में कितना सुकून होता है,
जब कोई मुद्दवा नहीं होता|
हो न जब तक शिकार-ए-नाकामी,
आदमी काम का नहीं होता|
ज़िन्दगी थी शबाब तक "सीमाब",
अब कोई सानेहा नहीं होता|