भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न´् नजर आबऽ हे / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
केकरा कही हम अप्पन हो भइया
कोय नञ् अप्पन नजर आबऽ हे
घिर गेल चहूँओर काली रे बदरिया
हमरा नजर नञ् फजर आबऽ हे
केकरा ....
चहूँओर घुरऽ हे चोर-बेइमनमा
आय गेलय हाय राम जुल्मी-जमनमा
हाय राम चलूँ अब कउने डगरिया
हमरा नजर नञ् डगर आबऽ हे
घिर ....
कोय बात करे नञ् धरम-ईमान के
राज आ गेलइ डाकू-शैतान के
चहूँओर लूटमार मच गेल भइया
सगरो नजर अजगर आबऽ हे
घिर ...
केकरा सुनाऊँ कोय सुन्नेवाला नञ् हे
केकरा गुनाऊँ कोय गुन्नेवाला नञ् हे
सब कोय बे-शरम भे गैले भइया
कोय के नञ् बतिया असर आबऽ हे
घिर ...
सिधका डगरिया के कोय नञ् रहिया
कोय नञ् अप्पन देसवा के सिपहइया
केक्कर हँथवा में बागडोर दी हम
कोय नञ् नजर अकबर आबऽ हे
घिर ...