भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नंदसुत रसमय बन तैं आवत / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
नंदसुत रसमय बन तैं आवत।
रसमय करत बिनोद बिबिध बिध, रसमय नयन नचावत॥
रसमय गो-पद-धूलि-धूसरित, रसमय बच्छ खिलावत।
रसमय नटवर-रूप मनोहर, रसमय कमल फिरावत॥
रसमय स्याम-नील श्रीतनु पर उज्ज्वल दुति दमकावत।
रसमय पीत बसन बिद्युत-सम अनिल-लहर लहरावत॥
रसमय मधुर अधर धर मुरली रसमय तान सुनावत।
रसमय मधुर सुधाधर सुर सौं रसमइ रागिनि गावत।
रसमय गोल कपोल, स्रवन रसमय कुंडल झलकावत।
रसमय भृकुटि कुटिल सौं रसमय गोपी-मन सरसावत॥
रसमय घुँघरारी अलकावलि अलिकुल-पाँति लजावत।
रसमय सिर सिखि-पिच्छ मुकुट रसमइ सुषमा बगरावत॥
रसमय सकल अंग अति रसमय, मधुर-मधुर मुसुकावत।
रसमय ललित भंगिमा रसमय सखनि समोद हँसावत॥