भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नइकी जनानी / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग में ढंग में चाल में कमाल हे
हाई हील पर चले बॉबकट बाल हे
भौंआँ कटैयासन रूप चमकीली बड़ी
नइकी जनानी के देखे सब खड़ी-खड़ी
प्लास्टिक के बेग हे लिपस्टिक ठोर पर
अंगुठी हे कत्ते ने अंगुरी के पोर पर
छमकल आवे ऊ झमकल जाय चलल
हँसे ऊ जैसें नदी कोय करे खलखल
जोत ओकर बरे हे अँचरा नय धरे हे
मुस्की मारको भी देखे तरे-‘तरे हे
हाथ में घड़ी हे लगे जैसें परी हे
पैने हे कोय अपरूप ई जड़ी हे
कजै दुपट्टा के अँचरा ई झार रहल
बोले हे कत्ते से करेहे चहल-पहल
कार ई चलावे हे आँख मटकावे हे
कोय बड़ चोटी कमरतक लटकावे हे
झटके हे महंके हे कजै नै अँटकेहे
रिक्शा मोटर सब मधुमक्खीसन लटके हे
फर्र-फर्र उड़ेहे स्कूअर पर जनानी ई
तोरा सुनैबो आधुनिका के कहानी ई
मुँह सिगरेट चाय चुस्की भी देहे ई
पूरे बजार में देखो की ले हे ई
कजै नाचगान करे कजै अरकेस्ट्रा
देखे सिनेमा सब टाइम हे एकस्ट्रा
नखरा नाज करे कीने सामान बड़ी
घर आवे तो लटझार करे पापा खड़ी
चुल्हा चक्की जाने नै करम धरम माने नै
जाय आवे में अब ऊ कजै सोड़ावाटर विह्स्की
कजै करे हेलो हेलो कजै कनफुसकी।