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नई (अ)व्यवस्था / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
छुटकी बिटिया
अपनी माँ से
करती कई सवाल
चूड़ी-कंगन
नहीं हाथ में
ना माथे पर बैना है
मुख मटमैला-सा
है तेरा
बौराए-से नैना हैं
इन नैनो का
नीर कहाँ-
वो लम्बे-लम्बे बाल
देर-सबेर
लौटती घर को
जंगल-जंगल फिरती है
लगती
गुमसुम-गुमसुम-सी तू
भीतर-भीतर तिरती है
डरी हुई
हिरनी-सी है क्यों
बदली-बदली चाल
नई व्यवस्था में क्या
ऐ माँ
भय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर
उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है
पार करेंगे
कैसे सागर
जर्जर-से हैं पाल