भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नई ज़मीन नया फ़लसफ़ा / ज्ञानेन्द्र पाठक
Kavita Kosh से
नई ज़मीन नया फ़लसफ़ा तलाश करो
नई ग़ज़ल के लिए कुछ नया तलाश करो
मेरा ज़मीर जो रस्ता मुझे दिखाता था
वो मुझको छोड़ कहाँ गुम हुआ तलाश करो
वो एक शख़्स जो मुझको बहुत ही प्यारा था
किसी ने छीन लिया तुम ज़रा तलाश करो
क़दम क़दम पे मिलेंगे बहुत से चौराहे
इन्हीं में सोच समझ रास्ता तलाश करो
वो जिसका काम ही फूलों को हार करना था
वो आदमी था मियाँ काम का तलाश करो