भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नए युग की अप्सराएँ / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और वे हैं खड़ी
आतुर - नये युग की अप्सराएँ

घूमता है रोशनी का
एक गोला मंच पर
लौटता है दर्शकों की ओर
उनको जाँचकर

वह बताता है
सभी को - देह की उनकी कथाएँ

देह उनकी षोडशी
सौन्दर्य का है आँकड़ा
और चेहरा मुस्कराता
फ़्रेम में जैसे जड़ा

चल रही
हर ओर हैं - उनको परखती मंत्रणाएँ

आँकड़ों को जोड़ते हैं
योग्य निर्णायक
देख उनको आह भरता
गली का नायक

दिये की लौ हैं
कि वे हैं इन्द्रधनुषी याचनाएँ

देखता उनको ठिठककर
दूर से सूरज
आँकड़ों में बँधी
उनकी देह का अचरज

वे रहें
सुंदर-सजीली - दे रहा है वह दुआएँ