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नए रोम का शैशव / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
पत्थरों के बीच उगते सुंदर इस नये शहर में
रह सकते हो अगर
तो स्वागत आपका श्रीमन्!
वैसे भी इस शहर के असल वाशिंदे
एक भयानक सुबह कत्ल हुये
पटियों पर रोशन रहने वाला यह शहर
अब अतिक्रमणों से मुक्त है
रात-बिरात बैठने का मन हो
नसैनी लगानी हो आसमान तक
चूमना हो परियों के भाल
हाँकना हो शिकार के पैतृक किस्से
करनी हो रात भर गप्पगोई
तो माफ करें!
नहीं मिलेंगे फजल भाई या रामप्रकाश
रातों का जश्न कबका खेत हुआ
वहाँ अब पुलिस का पहरा है
और अंकों का नफा-नुकसान
यह नये रोम के शैशव का समय है
पत्थरों के बीच उगते सुंदर इस नये शहर में
स्वागत आपका श्रीमन्!
जहाँ असल भोपाल एक भयानक सुबह कत्ल हुआ।