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नज़र फेर ले ला / मणिशंकर प्रसाद

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बात करके नजर फेर ले ला
हमर घर में कदुआ फरल हे,
रात खइलूँ हल मडुआ के रोटी
अभी तक पेट में अंधड़ मचल हे ।
चैत में घर से बेटी के डोली सजइलों
अपन माथा पर सबके हम कर्जा चढ़इलों
खेत रेहन हे तइयो हम आशा बंधइलो
दर्द साले हे तइयो न केकरो बतइलो;
सावन बीतल हे अबतक न पानी पड़ल हे
खेत मरुआल हे मोरी अँइसी धरल हे ।
लोग कहऽ हथिन खेत सोना उगलतौ
भोट देमा तो चाँदी के सिक्का उछलतौ,
जीत जइबो तो सब घर के छप्पर मढ़इतौ
हार जइबो तो तोहिनी पर डंडा उछलतौ;
तो जीतऽ या हारऽ हमरा की फायदा
हम्मर तो किस्मत में भतुआ लिखल हे ।
तो मन्दिर में जाहऽ तो लड्डू मिलऽ हो
हम कुँइयों पर जाही पिअसले रहऽ ही,
तोरा बैठ ले घर-घर में कुर्सी मिलऽ हो
हम भूँइयों पर बैठूँ तरसले रहऽ ही;
ई दुनिया में जीला से की फायदा
जहाँ अदमी के अदमी से नफरत मिलल हे ।
रात गिन-गिन के तारा बिताबऽ ही हम
भूख लग जाहे तब छटपटाबऽ ही हम,
एक मुट्ठी भी दाना नञ घर में है अब
बात कैसे कहूँ सकपकाबऽ ही हम;
अपन दुखड़ा कहूँ तो केकरा से कहूँ
सच कहियो तो किस्मत ई हमरे जरल हे ।