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नदियाँ माँ हैं / सुधा गुप्ता
Kavita Kosh से
16
गातीं चट्टानें
सरस जलगीत
निष्छल प्रीत।
17
मोती-सा जल
उर्मियाँ अविरल
पूत चरित्र।
18
जीवनदात्री
विष से भर डाली
माँ मन्दाकिनी।
19
भूला मानव
नदियों की प्रणति
फेंके कचरा।
20
रूठे हैं मेघ
सूख गई नदियाँ
कुएँ भी खाली।
21
बची न आस
घुटती ही जा रही
नदी की साँस।
22
नदियाँ माँ हैं
प्रदूषित न करो
बाज़ भी आओ।
23
फेन उड़ाती
नटखट है गंगा
शोर मचाती
24
गंगा के वक्ष
तिरती नई नावें
सोन जल में ।
25
गंगा के जल
गिरी बूँदों का शोर
दोगुना रोर
26
मोती-सा जल
उर्मियाँ अविरल
पूत चरित्र
27
भरे पड़े हैं
सुचिक्कण पत्थर
नदी -किनारे
28
मन्दाकिनी से
गलबाँहीं दे मिले
अलकन्दा
29
पाँव पलोटे
मुग्धा अलकनन्दा
प्रियतम के ।
30
पवित्र धार
पापी पर न गिरे
जल -फुहार