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नदी खो नहीं गई है / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
सूखे पर्वतों ने कहा मेरे कान में
‘कोई किसी के लिए नहीं जीता है।
पेड़ अपने बचाव में लड़ रहे हैं।’
कंडेक्टर ने कहा
‘यहाँ हडसन नदी को नीचे छिपा दिया है धरती में।’
मैंने कहा: ‘नदी छिपकर भी खो नहीं गई है।’