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ननदी के आँगन चनन घन गछिआ / भोजपुरी
Kavita Kosh से
ननदी के आँगन चनन घन गछिआ, छिछना-विछना भइले डाढ़।
छिछना-विछना भइले डार गे देवी, ताहि डाढ़ चढ़ीं ओ जगदम्बा।।
पूरुवे के डाढ़ चढ़ि बइठलन सुरुज बाबा, बाबा कइ देहु धरम विचार।
बाबा कर देहु लगन विचार।।
ननदी के अँगना चनन घन गछिया, छिनना-बिछना भइले डाढ़ गे देवी।
छिछना-बिछना भइले डार।।
एक डाढ़ फूटि पछिम गइले, छेंकी लेहले पछिम दुआर गे देवी।
ननदी के आँगन चनन घन गछिया, पाकड़ सिररिजेले डाढ़,
पाकड़ सिरिजेले डा़ढ़ गे देवी, ताहि डाढ़ चढ़ी ओ जगदम्बा।।
ननदी के अँगना चनन घन गछिया, छिछना-बिछना भइले डाढ़ गे देवी।
एक डाढ़ फूटी उत्तर गइले, छेंकी लेले भीम के दुआर।
ननदी के अँगना चनन घन गछिया, छिछना-बिछना भइले डाढ़।
एक डाढ़ फूटी दिखन गइले, छेंकी लेले गंगा के दुआर।