नन्हा-सा एक बादल / प्रकाश मनु
एक दिन नन्हा-सा एक बादल
आया मेरी छत पर,
बादल था वह चाँदी जैसा
सुंदर, बेहद सुंदर।
आकर बोला बादल मुझसे
मेरे दोस्त बनोगे,
मैं तो हूँ सैलानी पक्का
मेरे साथ चलोगे?
मैं बोला, हाँ, चलो-चलो जी
मैं भी साथ चलूँगा,
साथ निभाओगे तो मैं भी
सच्चा दोस्त बनूँगा।
बादल ने तब मुझे बिठाया
और उड़ा वह चंचल,
बादल के संग उड़ते-उड़ते
देखी दुनिया पल-पल।
बड़े अजूबे देखे जग के
दुनिया नई-निराली,
ऊँचे पर्वत, सुंदर नदियाँ
घाटी फूलों वाली।
सारी दुनिया मुझे घुमाकर
लाया फिर वह घर में,
बोलो, अब तो खुश हो कुक्कू
बोला मीठे सुर में।
देख रहा था, कितना प्यारा
है यह नन्हा बादल,
मगर तभी जलधारा बनकर
बरस पड़ा वह छल-छल।
भीगी दुनिया, बाग-बगीचे
भीगा तन-मन सारा,
ओहो, बादल है या कोई
प्यारा-सा फव्वारा!
अचरज में था डूबा, तब मैं
चुप-चुप सोच रहा था,
यह नन्हा बादल भी तो है
नन्हे जादूगर-सा।
पर इतने में ढेर-ढेर-सी
मस्ती खूब लुटाकर,
बाय-बाय कह घुला हवा में
नन्हा-सा वह बादल।