भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नन्ही चिड़िया / सरस्वती माथुर
Kavita Kosh से
वह नन्ही चिड़िया थी
धूप का स्पर्श ढूँढती
फुदक रही थी
अपने अंग प्रत्यंग समेटे
सर्दी में ठिठुर रही थी
रात भर अँधेरे में
सिकोड़ती रही अपने पंख
पर रही
प्रफुल्लित, निडर और तेजस्वी
जैसे ह़ी सूरज ने फेंकी
स्नेह की आंच
पंख झटक कर
किरणों से कर अठखेलियाँ
उड़ गयी फुर्र से
चह्चहाते हुए
नई दिशा की तलाश में!