भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नफ़रतों का लिखा बदलना है / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
नफ़रतों का लिखा बदलना है
कीजिए फ़ैसला बदलना है
इक नई रोशनी की चाहत में
फिर सियासी दिया बदलना है
इस जगह है ग़मों को आसानी
हम को अपना पता बदलना हैं
आंच आने लगी उसूलों पर
अब हमें रास्ता बदलना है
अपने किरदार पर नज़र डालो
मुफ़्त में आईना बदलना है