नब गाछ आ माटि / दीपा मिश्रा
हम अपनाकेँ हाथमे लेने
दौड़ैत रही
बुझबामे नै आबय जे कतय रोपी
किओ किछु नै बतौलक
किओ किछु नै सिखौलक
देखाएल ख़ूब बड़का-बड़का गाछ
बसातक संग झूमि रहल छल
हम डरा गेलौं
एतय हमरा बहुत किछु अन्सोंहात लागल
पैघ गाछ सबसँ लटकल झुलैत अमरलत्ती सब देख मोन घृणासंँ भरि उठल
कतौ आत्ममुग्ध ताड़ छल
त' कतौ चतरैत प्रवचन दैत पिपर
कतौ मदमत्त बौरायल कचनार
देखलौं अगल-बगल उगि आएल
छोट-छोट गाछ सबकेँ
कतेको पैघ गाछक ठाइर
दबबैत जा रहल छल
ओकर अस्तित्व पर साधिकार
अपन दावा जेना ठोकने रहे
ओ सब हमरा देखि लोभ प्रलोभन
दिए लागल
हम आँखि मूनि भगैत गेलौं
दूर बड दूर किछु वटवृक्ष मात्र छल
कोस कोस पर पलाश सब देखि हम बुझि गेलौं आब पथ सुन्ने भेटत
आगाँ आरो बढ़ला पर जखैन किछु नहि देखाएल
हम अपनाकेँ निचेन भ' के रोपि देलौं
ओहि बियाबानमे हम भले असकर रही
मुदा भयहीन रही
हमर अस्तित्वकेँ गढ़बाक लेल एकांत आवश्यक छल
हमर माए कहने छलीह
नब गाछके माटि भेटब सहज नहि होइत छै
पैघ गाछ छाँह त' देत
मुदा ओकर मोल सेहो मांगत
हमरा ओ किन्नहु स्वीकार नै