नब नचारी / यात्री
अगड़ाही लागउ, वज्र खसउ,
बरू किच्छु होउक...
नहि नबतै तोरा खातिर किन्नहु हमर माथ !
पाथर भेलाह तों सरिपहुँ बाबा बैदनाथ !
बेत्रेक अन्न भ’ रहल आँट नेना-भुटका
दुबरैल आंगुरें कल्लर सभ बीछए झिटुका
मकड़ाक जालसँ बेढ़ल छइ चुलहाक मूँह
थारी-गिलास सब बेचि बिकिनि खा गेलइ, ऊँह
कैंचा जकरा से, खाए भात
क’ रहल मौज से, जकरा छइ कोनो गतात
सरकारी राशन द’ रहलइए-
अन्हरागाँही चउबरदामे चाँइ-चोर
आन्हर-बहीर, बम्भोला !
तोरा पर उठैत अछि तामस हमरा बड्ड जोर
गौरी पहिरथि फाटल भूआ
कार्तिक-गणेश छथि गीड़ि रहल
उसिनल अगबे अल्हुआक पात
बइमान बापसँ की माँगथु ग’ दालि-भात
अपने पबैत छह भोग छप्पनो परकारक
अनका लेखें तँ दुर्लभ छइ आको धथूर
बुझि पड़ितहु जँ सुनितहक-
उपासल कमरथुआ केर मुइल सूर !
बरू किच्छु कह’
पचकल लोढ़ा, तों धन्न रह’
नहि आब नचारी केओ गओतहु !
जे बूड़ि हैत से बोकिअओतहु !
नहि रहलइ ककरो किच्छु मात्र तोहर भरोस ....
माटिक महत्तवकें चीन्हि लेलक ई देश-कोश !
पाथर भेलाह तों सरिपहुँ बाबा बैदनाथ !
नहि नबतै तोरा खातिर किन्नहु हमर माथ !