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नमस्कार के मर्म में है उदासी / सुदीप बनर्जी

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नमस्कार के मर्म में है उदासी
दिन भर की थकान और फिर
पौ फटने तक चुप्पी
नमस्कार का मतलब है
न्यौछावर तुम पर है यह दिनचर्या
गो कि इसमें कुछ समेटने लायक नहीं
तुम्हारे लिए

इसके दो छोरों पर हम-तुम
नमस्कार कोई शब्द अलहदा तो नहीं
जो बन सकता काँपता पुल

इस तमाम आपबीती को लांघता
दरकिनार करता उदासी को ।