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नमूना / सुशीला टाकभौरे
Kavita Kosh से
मैं रह सकती हूं
समुद्र की तलहटी में
जल वनस्पति की तरह
अपार जल के भार को
वहन करते
थल-नभ के सभी सुखों से दूर
अंधेरों से प्रकाश में
कभी न आ पाने के दुख से बोझिल
हिंसक जन्तुओं के बीच
साहचर्य जताते
गलने-सड़ने की बात से निरपेक्ष
मैं सब कुछ सह सकती हूं
मगर यह नहीं कि बरबस
मुझे किसी छोटे गमले में
लगाया जाये
या किसी नर्सरी में
मात्र अर्थोपार्जन के लिए
एक नमूने के रूप में रखा जाये!