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नमो-नमो यमुना महारानी! / गोपालप्रसाद व्यास
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गंगा घहरावैं, युमनाजी मंद-मंद बहैं,
वहाँ रोड़ी-रोड़ा, यहाँ कदमन की छय्या।
वहाँ पड़ै हड्डी, यहाँ चढ़ैं दूध फूल,
वहाँ चंडी चेतै, यहाँ महाविद्या मय्या।
वहाँ कूँडी-सोटा और चीमटा-चिलम चलैं।
यहाँ ठौर-ठौर जमे विजया-घुटय्या।
वहाँ मिलैं साधूजन, यहाँ मिलैं स्वादू 'व्यास'
वह हर की पैंड़ी, यह हरि-जनमय्या॥