भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नयका साल / संजीव कुमार 'मुकेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरियर धान के मुर-मुर चुड़ा,
खाके गइहा ताल में।
झगड़ा-द्वेष-कुरिति मिटावऽ,
अबकी नयका साल में।

द्वेष-दमन, रगड़ा-झगड़ा में,
के बनलई इ सोचऽ!
प्यार, दान, सहयोग, समर्पण,
दौड के तनी दबोचऽ।
कुछ आगे बढ़ तु समझावऽ
हम ला देवो लाग में।
झगड़ा-द्वेष-कुरिति मिटावऽ,
अबकी नयका साल में। हरियर ...

डिजिटल होके, डिजिटल करहो,
इंडिया डिजिटल बन जइतइ.
कैश-लेश जब काम होतय,
त, कऊन कमीशन खअतइ.
बटुआ नय अब रखे पडतय,
सब हो जइतय मोबाइल में।
झगड़ा-द्वेष-कुरिति मिटावऽ,
अबकी नयका साल में। हरियर ...

गुरू गोविन्द सिंह जन्म प्रकाश,
उत्सव हो रहलइ भारी।
कि बिहार कि देश आऊ दुनियाँ,
पहुंचल सेवक संसारी।
इ बिहार के मट्टी चनन,
रगडऽ तनी कपार में।
झगड़ा-द्वेष-कुरिति मिटावऽ,
अबकी नयका साल में। हरियर ...