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नया एक नाम दो / साहिल परमार

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नया एक नाम दो
तुम
मुझे एक नाम दो।

गुमराही ने घेर लिया था
गर्दिश में था खोया
गलियों से मैं बिछड़ के, यारा
चैन से फिर ना सोया
पाँव सम्हलने लगे हैं मुझ को
तुम नया अनजाम दो.
मुझे एक नाम दो।

आम लोगों के आँसू-पीड़ा
और उन के ज़ज्बात
प्यार जमीं का भूल के मैं ने
कहाँ लगाईं आस?
लाल ख़ून की स्याही भर दूँ
फिर
वही पैगाम दो,
तुम
मुझे एक नाम दो।

कोई था बम्मन, कोई था बनिया
कोई हरिजन जात
इंक़लाब के ख़्वाब ने कैसे
एक किए थे हाथ
नई नस्ल को जोड़ दूँ ऐसे
तुम
वही ईमान दो,
तुम
मुझे एक नाम दो,
नया एक नाम दो।

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार