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नया एपिडैमिक / सुधेश
Kavita Kosh से
मुझे हर वस्तु चाहिये
पर वस्तु बनना पसन्द नहीं
हर वस्तु का उपभोक्ता हूँ
पर उपभोक्तावाद पसन्द नहीं
बाज़ार जाना ही पड़ता है
पर बाज़ारवाद पसन्द नहीं।
मैं गाँव मोहल्ले शहर
देश के बाहर
विश्व में मिलना चाहता हूँ
पर वैश्वीकरण पसन्द नहीं।
मैं जाति धर्म नस्ल से ऊपर उठ कर
उदाऱता की प़तिमूर्त्ति हूँ
पर उदारीकरण पसन्द नहीं
लेकिन मेरी पसन्द नापसन्द
का क्या मूल्य
जब तक वह सब की न हो।
पर आज वैश्वीकरण उदारीकरण बाज़ारीकरण
फल फूल रहे हैं
नए एपिडैमिक की तरह
बुद्धिजीवी चिल्ला के चुप हैं
क़ान्तिकारी क़ान्ति से पहले ग़ायब
किसी को कोई शिकायत नहीं
पर मुझे है
क्योंकि मैं हूँ आम आदमी।