भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया कोई गीत लें/राणा प्रताप सिंह
Kavita Kosh से
नया कोई गीत ले
जंग चलो जीत ले
घटती है नम्रता
बढ़ती उद्विग्नता
चुकती शालीनता
मीठा पाया है बहुत
आज चलो तीत ले
कथनी को तोल दे
दूजों को मोल दें
वातायन खोल दे
भीड़ भरी दुनियां में
खोज नया मीत लें
दृश्य ये विहंगम है
कष्टों का संगम है
जग सारा जंगम है
बासंती झोंके तज
आज शिशिर शीत लें