भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया दर्द / वंदना मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह भी सच है कि
स्त्रियों का एक-सा दर्द
पढ़ते-पढ़ते, देखते-देखते
ऊब चुके हो विद्वतजन!

तुम्हें चाहिए कुछ अनोखा
चटपटा सा,
नया दर्द
जो ज़ायकेदार बना दे
तुम्हारी चाय की
चुस्कियों को,

पर कभी गैरत नहीं जगती
तुम्हारी कि अब तक नहीं
मिटा सके उन दर्दों
की कसक
अपने ही
सिसकते आँगन से।