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नया पुराना / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
चलते-चलते मिला अपरिचय
उसका चलना
जाने कैसे उलझ गया मेरे चलने से
रास्ते अपने आप रास्ता लगे बदलने
दीवारों पर लिखे पुराने धुँधले नारों
से टकराई नयी नज़र तो
और-और अर्थों से भर कर वही लिखावट
लगी चमकने जगमग-जगमग