भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया सवेरा लाना तुम / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
टिक टिक करती घड़ियाँ कहतीं
मूल्य समय का पहचानो।
पल पल का उपयोग करो तुम
यह संदेश मेरा मानो ॥
जो चलते हैं सदा, निरन्तर
बाजी जीत वही पाते।
और आलसी रहते पीछे
मन मसोस कर पछताते॥
कुछ भी नहीं असम्भव जग में,
यदि मन में विश्वास अटल।
शीश झुकायेंगे पर्वत भी,
चरण धोयेगा सागरजल॥
बहुत सो लिये अब तो जागो,
नया सवेरा लाना तुम।
फिर से समय नहीं आता है,
कभी भूल मत जाना तुम॥