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नया साल / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
रात के बारह बजते
हम ढुक जाएव नया साल में
चारू तरफ
फटाका लागत फूटे
आउर छा जाएत
एगो नया उल्लास
पूरा वातावरन में।
सहरी लोग जहां
पाटी में मसगूल हो जाएत
त कुछे घंटा के बाद
सुरूजो निकल जाएत
अप्पन नया किरीन के साथ
आ चहचहाए लागत चिडईया
नया साल के स्वागत में।
तखनिए कहीं से
मुन्ना काने लागत ला
त गरीब माई
अप्पन सूखल छाती में
टटोले लागत दूध।
भोर होइते जब हम देखली
फेनू से ओनाहिते हए भीड़
रासन के कतार में
समाचार-पत्र में-
चोरी/डाका/बलत्कार बनल हुए
मुख्य खबर
त हमरा बुझाएल कि-
नया साल में
कुछो न हए बदलल
बस एगो कलेन्डर के सिवा।