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नया साल है बाहर आया / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
सुनो, सखी
दरवाज़ा खोलो
नया साल है बाहर आया
छोड़ गया है पिछला साल उसे
बर्फीली हवा झेलने
नन्हें पाँवों
यह कोहरे की पगडंडी पर
लगा खेलने
अभी मस्त है
उसे न व्यापी है
कुहास की काली छाया
द्वार खोलकर
उसे बुला लो
भीतर अपने घर-आँगन में
वही खिलायेगा
सुहाग के फूल
तुम्हारे भोले मन में
फूलेगा वह
हरसिंगार भी
जो था पिछले साल लगाया
बच्चा है वह
उसे संजोकर रखना घर में
बड़े प्यार से
उसके हँसने की धुन आती
हाँ, पड़ोस की नदी-धार से
पिछला साल
बड़ा-बूढ़ा था
बर्फ-नदी में कहीं समाया