नयी निशानी / महेन्द्र भटनागर
जन-जन के मानस पर रूढ़ि पुरातन हावी
पर, निश्चय, नव किरणों से चमकेगा भावी !
प्रतिद्वन्द्वी, प्रतिगामी, प्रतिध्वनि सकल विरोधी
तम का परदा काला, दुर्गमता अवरोधी,
नव लहरों के अविरल धक्कों से हो आहत
हो जाएगा सभी प्रगति के चरणों पर नत !
युग गति का वेग असह्य दुर्जय भारी दुर्दम
सतत प्रखर जिसके हैं विद्युतमय सकल क़दम !
चट्टानें तड़क रहीं, भीषण स्वर, लुंठित
झ×झा के पीछे हो खंडित शिथिल पराजित !
टूटीं जटिल सभी आज समाजी सीमाएँ,
धू-धू कर धधक रहीं प्राचीन विषमताएँ !
भू-कंपन से उखड़ी जाती जड़ें पुरानी,
दीख रही धरती पर उगती नयी निशानी !
एक नयी दुनिया का संदेश सुना जग ने,
सावधान हो, सोये जन, मुक्त जगे लगने !
सत्य प्रखर हो सम्मुख आया मानवता के,
स्वर फूट पड़े चहुँ ओर नयी ही समता के !
परिवर्तन, विप्लव युग, है व्यस्त सतत मानव,
लाने को अवनी पर ज्योतिर्मय युग अभिनव !