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नवजन्म / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
युगों से भटकता मन
तुम्हारे द्वार तक
कैसे आया
कुछ पता नहीं
बस
इतना याद है
कि तुम्हारी
मुहब्बत के
पवित्रा जल से
जन्मों की धूल से सना
अपना
चेहरा धोया
और
नवजन्म में
प्रवेश कर गया...।